उडिपी रामचंद्र राव (कन्नड: ಉಡುಪಿ ರಾಮಚಂದ್ರ ರಾವ್, जन्म:१० मार्च १९३२, निधन: २४ जुलाई २०१७) भारत के एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक तथा भारतीय उपग्रह कार्यक्रम के वास्तुकार थे। उन्होने भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास तथा प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में संचार एवं सुदूर संवेदन के विस्तृत अनुप्रयोग के लिये मौलिक योगदान दिया है। वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भूतपूर्व अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में ही वर्ष १९७५ में भारत का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। वे भारत के प्रथम अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे जिन्हें वर्ष २०१३ में ‘सैटेलाइट हाल ऑफ द फेम’ में तथा वर्ष २०१६ में ‘आईएएफ हाल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया गया था। निधन से पूर्व वे तिरुवनंतपुरम में स्थित भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान के कुलपति के रूप में कार्यरत थे। उनको भारत सरकार द्वारा सन १९७६ में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से तथा वर्ष २०१७ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
कर्नाटक में उडुपी जिले के अडामारू क्षेत्र में जन्मे राव इसरो के सभी अभियानों में किसी न किसी तरह शामिल थे। १९६० में अपने कैरियर की शुरुआत के बाद से भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास में खासकर संचार और प्राकृतिक संसाधनों के सुदूर संवेदन के व्यापक उपयोगों में योगदान दिया है। वे इसरो उपग्रह केंद्र के प्रथम निदेशक थे। १९७६ से १९८४ तक केन्द्र के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल में, वे देश में उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी पथ प्रदर्शक रहे। उन्होने १९७२ में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी की स्थापना के लिये ज़िम्मेदारी ली। उनके मार्गदर्शन में, १९७५ में प्रथम भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ संचार, सुदूर संवेदन तथा मौसम विज्ञान सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए १८ से भी ज़्यादा उपग्रहों की अभिकल्पना एवं प्रमोचित की गई। १९८४ में अध्यक्ष, अंतरिक्ष आयोग एवं सचिव, अंतरिक्ष विभाग के रूप में कार्यभार संभालने के उपरांत, उन्होने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास को आगे बढ़ाया। परिणामस्वरुप ए.एस.एल.वी. रॉकेट तथा प्रचालनात्मक पी.एस.एल.वी. प्रमोचन यान जो ध्रुवीय कक्षा में २.०टन श्रेणी के उपग्रहों को प्रमोचित कर सकता है का प्रमोचन सफलता पूर्वक किया गया। उन्होने १९९१ में भू-स्थिर प्रमोचन यान जी.एस.एल.वी. के विकास एवं निम्नतापीय (क्रायोजेनिक) प्रौद्योगिकी के विकास की शुरूआत की। निधन से पूर्व वे अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के शांसकीय परिषद के अध्यक्ष थे। एम.आई.टी. में संकाय सदस्य के रूप में कार्य करने के उपरांत डल्लास के टेक्सास विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर रहे जहाँ उन्होंने कई अग्रणी तथा अन्वेषक अंतरिक्षयानों पर प्रमुख प्रयोगकर्ता के रूप में अन्वेषण किए, वे १९६६ में भारत वापस लौटे और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद के प्रोफेसर बने।
उन्होने कॉस्मिक किरणें, अंतरग्रहीय भौतिकी, उच्च ऊर्जा खगोलिकी, अंतरिक्ष अनुप्रयोग एवं उपग्रह तथा रॉकेट प्रौद्योगिकी विषयों पर ३५० से भी अधिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी लेख प्रकाशित किए हैं और कई किताबें लिखी हैं। वे २१ से भी अधिक विश्वविद्यालयों से डी.एस.सी. (मानद डाक्टरेट्) के भी प्राप्त कर्ता है, जिनमें यूरोप का सबसे पुराना विश्वविद्यालय, बोलोगना विश्वविद्यालय भी शामिल है।
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