Monday 15 March 2021

Sundar Pichai Google CEO [ Pichai Sundarajan] - Biography

  


भारतीय मूल के सुंदर पिचाई को गूगल का नया सीईओ बनाया गया है। सुंदर पिचाई अब तक कंपनी  में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट थे। चेन्नई में 1972 में जन्मे सुंदर पिचाई का मूल नाम पिचाई सुंदराजन  हैलेकिन उन्हें सुंदर पिचाई के नाम से जाना जाता है।

सुंदर पिचाई ने अपनी बैचलर डिग्री आईआईटीखड़गपुर से ली है। उन्होंने अपने बैच में सिल्वर मेडल हासिल किया था।  अमेरिका में सुंदर ने एमएस की पढ़ाई स्टैनडफोर्ड यूनिवर्सिटी से की और वॉर्टन यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। पिचाई को पेन्सिलवानिया यूनिवर्सिटी में साइबेल स्कॉलर के नाम से जाना जाता था। 



सुंदर पिचाई ने 2004 में गूगल ज्वाइन किया था। उस समय वे प्रोडक्ट और  इनोवेशन ऑफिसर थे। सुंदर सीनियर वाइस प्रेसीडेंट (एंड्रॉइडक्रोम और ऐप्स डिविजन) रह चुके हैं। पिछले साल अक्टूबर में उन्हें गूगल का सीनियर वीपी (प्रोडक्ट चीफ) बनाया गया था। एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के डेवलपमेंट और 2008 में लांच हुए गूगल क्रोम में उनकी बड़ी  भूमिका रही है। 

आर्थिक तंगी में सुंदर पिचाई 1995 में स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गेस्ट रहते थे। पैसे बचाने के लिए उन्होंने पुरानी चीजें इस्तेमाल कींलेकिन पढ़ाई से समझौता नहीं किया। वे पीएचडी करना चाहते थे लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें बतौर प्रोडक्ट मैनेजर अप्लायड मटीरियल्स इंक में नौकरी करनी पड़ी। प्रसिद्ध कंपनी मैक्किंसे में बतौर कंसल्टेंट काम करने तक भी उनकी कोई पहचान नहीं थी।



अप्रैल 2004 को वे गूगल में आए। सुंदर का पहला प्रोजेक्ट प्रोडक्ट मैनेजमेंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्च टूलबार को बेहतर बनाकर दूसरे ब्रॉउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था। इसी दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि गूगल को अपना ब्राउजर लांच करना चाहिए। 

 

इसी एक आइडिया से वे गूगल के संस्थापक लैरी पेज की नजरों में आ गए। इसी आइडिया से उन्हें असली पहचान मिलनी शुरू हुई। 2008 से लेकर 2013 के दौरान सुंदर पिचाई के नेतृत्व में क्रोम ऑपरेटिंग सिस्टम की सफल लांचिंग हुई और उसके बाद एंड्रॉइड मार्केट प्लेस से उनका नाम दुनियाभर में हो गया।



सुंदर ने ही गूगल ड्राइवजीमेल ऐप और गूगल वीडियो कोडेक बनाए हैं। सुंदर द्वारा बनाए गए क्रोम ओएस और एंड्रॉइड एप ने उन्हें गूगल के शीर्ष पर पहुंचा दिया। पिछले साल एंड्रॉइड डिविजन उनके पास आया और उन्होंने गूगल के अन्य व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी अपना योगदान दिया। पिचाई की वजह से ही गूगल ने सैमसंग को साझेदार बनाया। 

प्रोडक्ट मैनेजर के रूप में जब सुंदर ने गूगल ज्वाइन किया थातो इंटरनेट यूजर्स के लिए रिसर्च कियाताकि यूजर्स जो इन्स्टॉल करना चाहते हैंवे जल्दी इन्स्टॉल हो जाए। हालांकि यह काम ज्यादा मजेदार नहीं थाफिर भी उन्होंने खुद को साबित करने के लिए अन्य कंपनियों से बेहतर संबंध बनाएंताकि टूलबार को बेहतर बनाया जाए। उन्हें प्रोडक्ट मैनेजमेंट का डायरेक्टर बना दिया गया।  2011 में जब लैरी पेज गूगल के सीईओ बनेतो उन्होंने तुरंत पिचाई को प्रमोट करते हुए सीनियर वाइस प्रेसीडेंट बना दिया गया था।

                 

BBK ELECTRONICS - DUAN YONGPING

 

 BBK ELECTRONICS - Duan Yongping



यहां पर मैं बताऊंगा इस कंपनी के शुरुआत से लेकर अभी तक के सफर के बारे मेंवैसे मैं आपको बता दूंकि यह कंपनी Kafi Famous Smartphone Brands ki Parent Company हैजैसे वन प्लस स्मार्टफोनओप्पो स्माटफोनवीवो स्मार्टफोनरियल मी स्मार्टफोनIQOO स्मार्टफोनअब आपको Pata लग गया होगाकि इतने सारे Famous Smartphone Brands इस कंपनी के ही हैयह कंपनी काफी सारी स्मार्टफोन Brands को दुनिया भर में Sell Karti हैऔर काफी ज्यादा प्रॉफिट Earn Karti है



About BBK Electronics

बीबीके इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशनचाइना की एक बहुत ही बड़ी कंपनी हैयह इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट बनाने का एक बहुत ही बड़ा MNC ग्रुप हैजोकि टेलीविजन सेट से लेकर MP3 प्लेयरDigital कैमरा और स्मार्टफोन बनाती हैइस कंपनी को 22 साल हो चुके हैंयह कंपनी 1998 में स्टार्ट हुई थीइसके मालिक का नाम है Duan Yongping और इस कंपनी का हेड क्वार्टर डाउनलोड चाइना में हैपूरे वर्ल्ड में यह कंपनी अपने प्रोडक्ट काफी सारे Famous ब्रांड्स नेम के अंतर्गत Sell Karti Hai.



BiG Electronic Products Manufacture

आइए जानते हैंइस कंपनी के सफर के बारे मेंइस कंपनी का स्मार्टफोन के अलावा भी काफी सारे कैटेगरी में प्रोडक्ट आते हैंजैसे कि Blueray प्लेयर्स इस कंपनी के काफी ज्यादा फेमस हैहेडफोनहेडफोन एंपलीफायरस्मार्ट वॉच यह सभी चीजें ओप्पो Digital Company के अंतर्गत बेची जाती हैयह कंपनी चाइना की बहुत ही बड़ी कंपनी हैजो कि सबसे ज्यादा टैक्स Pay करती हैचाइनीस गवर्नमेंट कोअभी तक कंपनी ने 57 मिलियन स्मार्टफोन बेचे हैयह कंपनी स्मार्टफोन बेचने में सेकंड नंबर पर आती है All Over World, Huawei और एप्पल के बादतीसरे नंबर पर आती है सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स|

अब आप समझ गए होंगे कि इंडिया में बिकने वाले इतने सारे जो Famous स्मार्टफोन Brands Hai. उन सब के पीछे एक ही कंपनी है BBK Electronics China. तो आज के बाद जब भी आपकिसी से बात करें तो आपको पता होना चाहिएकि रियल मीओप्पोवीवो & वनप्लस एक ही कंपनी के Smartphone ब्रांड्स है|

UDUPI RAMACHANDRA RAO - BIOGRAPHY

 

उडिपी रामचंद्र राव (कन्नडಉಡುಪಿ ರಾಮಚಂದ್ರ ರಾವ್जन्म:१० मार्च १९३२निधन: २४ जुलाई २०१७) भारत के एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक तथा भारतीय उपग्रह कार्यक्रम के वास्तुकार थे। उन्होने भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास तथा प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र में संचार एवं सुदूर संवेदन के विस्तृत अनुप्रयोग के लिये मौलिक योगदान दिया है। वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भूतपूर्व अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में ही वर्ष १९७५ में भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। वे भारत के प्रथम अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे जिन्हें वर्ष २०१३ में सैटेलाइट हाल ऑफ द फेम’ में तथा वर्ष २०१६ में आईएएफ हाल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया गया था। निधन से पूर्व वे तिरुवनंतपुरम में स्थित भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान के कुलपति के रूप में कार्यरत थे। उनको भारत सरकार द्वारा सन १९७६ में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्म भूषण से तथा वर्ष २०१७ में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।



कर्नाटक में उडुपी जिले के अडामारू क्षेत्र में जन्मे राव इसरो के सभी अभियानों में किसी न किसी तरह शामिल थे। १९६० में अपने कैरियर की शुरुआत के बाद से भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास में खासकर संचार और प्राकृतिक संसाधनों के सुदूर संवेदन के व्यापक उपयोगों में योगदान दिया है। वे इसरो उपग्रह केंद्र के प्रथम निदेशक थे। १९७६ से १९८४ तक केन्द्र के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल मेंवे देश में उपग्रह प्रौद्योगिकी के विकास में अग्रणी पथ प्रदर्शक रहे। उन्होने १९७२ में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी की स्थापना के लिये ज़िम्मेदारी ली। उनके मार्गदर्शन में१९७५ में प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट’ संचारसुदूर संवेदन तथा मौसम विज्ञान सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिए १८ से भी ज़्यादा उपग्रहों की अभिकल्पना एवं प्रमोचित की गई। १९८४ में अध्यक्षअंतरिक्ष आयोग एवं सचिवअंतरिक्ष विभाग के रूप में कार्यभार संभालने के उपरांतउन्होने रॉकेट प्रौद्योगिकी के विकास को आगे बढ़ाया। परिणामस्वरुप ए.एस.एल.वी. रॉकेट तथा प्रचालनात्मक पी.एस.एल.वी. प्रमोचन यान जो ध्रुवीय कक्षा में २.०टन श्रेणी के उपग्रहों को प्रमोचित कर सकता है का प्रमोचन सफलता पूर्वक किया गया। उन्होने १९९१ में भू-स्थिर प्रमोचन यान जी.एस.एल.वी. के विकास एवं निम्नतापीय (क्रायोजेनिक) प्रौद्योगिकी के विकास की शुरूआत की। निधन से पूर्व वे अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के शांसकीय परिषद के अध्यक्ष थे। एम.आई.टी. में संकाय सदस्य के रूप में कार्य करने के उपरांत डल्लास के टेक्सास विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर रहे जहाँ उन्होंने कई अग्रणी तथा अन्वेषक अंतरिक्षयानों पर प्रमुख प्रयोगकर्ता के रूप में अन्वेषण किएवे १९६६ में भारत वापस लौटे और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशालाअहमदाबाद के प्रोफेसर बने। 


उन्होने कॉस्मिक किरणें
अंतरग्रहीय भौतिकीउच्च ऊर्जा खगोलिकीअंतरिक्ष अनुप्रयोग एवं उपग्रह तथा रॉकेट प्रौद्योगिकी विषयों पर ३५० से भी अधिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी लेख प्रकाशित किए हैं और कई किताबें लिखी हैं। वे २१ से भी अधिक विश्वविद्यालयों से डी.एस.सी. (मानद डाक्टरेट्) के भी प्राप्त कर्ता हैजिनमें यूरोप का सबसे पुराना विश्वविद्यालयबोलोगना विश्वविद्यालय भी शामिल है। 

Source by - https://en.wikipedia.org

Friday 23 August 2019

Christopher Columbus


क्रिस्टोफर कोलम्बस (१४५१ - २० मई १५०६) एक समुद्री-नाविक, उपनिवेशवादी, खोजी यात्री उसकी अटलांटिक महासागर में बहुत से समुद्री यात्राओं के कारण अमेरिकी महाद्वीप के बारे में यूरोप में जानकारी बढ़ी। यद्यपि अमेरिका पहुँचने वाला वह प्रथम यूरोपीय नहीं था किन्तु कोलम्बस ने यूरोपवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के बीच विस्तृत सम्पर्क को बढ़ावा दिया। उसने अमेरिका की चार बार यात्रा की जिसका खर्च स्पेन की रानी इसाबेला (Isabella) ने उठाया। उसने हिस्पानिओला (Hispaniola) द्वीप पर बस्ती बसाने की कोशिश की और इस प्रकार अमेरिका में स्पेनी उपनिवेशवाद की नींव रखी। इस प्रकार इस नयी दुनिया में यूरोपीय उपनिवेशवाद की प्रक्रिया आरम्भ हुई।
क्रिस्टोफर कोलंबस का जन्म इ.स. 1451 में जिनोआ में हुआ। उनके पिता जुलाहा थे। उन्हें दो भाई थे. बचपने कोलंबस पिताजी को उनके बिजनेस में मदत किया करते थे, लेकिन आगे उन्हें समुंदर का आकर्षण लगने लगा। अपने लगाव से और अभ्यास से उन्होंने नौकायन का ज्ञान प्राप्त किया। लॅटिन भाषा भी उन्हें अच्छे से आती थी। नौकायन का ज्ञान होने की वजह से उन्हें उत्तर की तरफ जानेवाली बोंट के साथ व्यापार के लिये जाने का मौका मिला। इंग्लंड, आयर्लड और आईसलॅड के 'थुले' इस जगह तक वैसेही आफ्रिका के पश्चिम के तरफ के अझोरेस, कॅनरी, केव व्हरडे इन बेंटो के साथ आफ्रिका के पश्चिम किनारे के गयाना तक उनका सफर हुआ।
उस समय में यूरोपियन व्यापारी उनके पास का माल भारत और आशिया खंड के बाजार में बेचा करते थे। और वापिस जाते समय वहा के मसालों के पदार्थ युरोप में लाकर बेचते थे। ये व्यापार जमीन के रास्ते से होता था। कॉन्स्टॅन्टी नेपाल ये शहर इस दुष्टिसे आशिया खंड का द्वार था। यहा से तुर्कस्थान, इराण, अफगनिस्तान के रास्ते से भारत में पहुचता था। सन 1453 में तुर्कानी ने कॉन्स्टॅन्टी नेपाल जित लिया और उन्होंने ये रास्ता यूरोपियन के लिये बंद किया। लेकीन तुर्की लोगों ने रास्ता बंद करने के वजह से यूरोपियन व्यापारियों के सामने बहोत बड़ी समस्या आयी।
भारत और आशिया खंड के प्रदेशो की ओर जाने वाला नया रास्ता ढूंढ निकालना बहोत जरुरी हुआ। इस के लिये बहोत प्रयास किये गये। तब पृथ्वी गोल होने के वजह से समुंदर के रास्ते से पश्चिम के दिशा में जाने से भारत मिलेगा थे विचार कोलंबस के दिमाग में आया। लेकीन पश्चिम तरफ से ये प्रदेश कितना दूर होंगा इसकी जानकारी किसी को भी नहीं थी।
भारत खोजने की इच्छा
कोलंबस ने पुर्तगाल के राजा जॉन द्वितीय के सामने भारत की खोज करने का प्रस्ताव रखा। दरअसल कोलंबस को लग रहा था कि, पुर्तगाल पूर्व में व्यापार और उपनिवेश की संभावनाओं को तलाश रहा है। कोलंबस की योजना को पुर्तगाल के विद्वानों ने असंभव करार देते हुए उसे सपनो में रहने की संज्ञा दे दी। लिहाजा कोलंबस स्पेन चला गया। कहते हैं इंतजार कभी-कभी इतना लंबा हो जाता है कि उम्मीदें डावांडोल हो जाती है। कोलंबस भी निराश हो रहा था, उसका धैर्य टूटने लगा था।
कोलंबस की पहली समुद्री यात्रा
कोलंबस ने अपनी पहली यात्रा तीन अगस्त 1492 को स्पेन के पालोस बंदरगाह से शुरु की। उस दिन बंदरगाह की रंगत कुछ और ही थी। स्पेन के राजा-रानी समेत हजारों लोग उस दिन एक ऐसे अभियान को हरी झंडी दिखाने आये थे, जो अगर कामयाब हो जाता तो आने वाले सालों में पूरे स्पेन की किस्मत बदल सकता था। बंदरगाह पर जो जहाज निकले थे उनका नाम था:
    सांता मारिया,
    नीना, और
    पेंटा
सफर के दौरान कोलंबस अपनी यात्रा का विवरण लिखता रहा। 6 सितंबर को जहाज अफ्रिका के निकट केनेर द्वीप पहुँचा। एक महीना बीतते -बीतते भोजन का समान खत्म होने लगा था। बरहाल कोलंबस अपने साथियों का मनोबल बढाते हुए निरंतर यात्रा कर रहा था। आखिरकार लम्बी यात्रा के बाद 10 अक्टूबर को यात्रा के सत्तर दिन पूरे हो गये तब उन्हें एक चिड़िया उड़ती नज़र आई, लगा की गल्फ की खाड़ी आ पहुंची है।
भौगोलिक विचार
कोलंबस के वाशिंगटन इरविंग की 1828 की जीवनी ने इस विचार को लोकप्रिय बनाया कि कोलंबस को अपनी योजना के लिए समर्थन प्राप्त करने में कठिनाई हुई थी क्योंकि कई कैथोलिक धर्मविज्ञानी आग्रह करते थे कि पृथ्वी सपाट है। वास्तव में, लगभग सभी शिक्षित पश्चिमी देशों ने कम से कम अरस्तू के समय से समझा था कि पृथ्वी गोलाकार है। टॉलेमी के काम में पृथ्वी की गोलाकारता का भी हिसाब है, जिस पर मध्ययुगीन खगोलशास्त्र काफी हद तक आधारित था। ईसाई लेखक जिनके कार्यों स्पष्ट रूप से इस विश्वास को प्रतिबिंबित करते हैं कि धरती गोलाकार है, इसमें सैंट बेडे ने अपने रिकॉर्ड के समय में सम्मानित किया था, जो कि ई। 723 के आसपास लिखा था। कोलंबस के समय में, आकाशीय नेविगेशन की तकनीकें, जो सूर्य की स्थिति और सितारों की स्थिति का उपयोग करती हैं आकाश, यह समझने के साथ कि पृथ्वी एक गोलाकार है, लंबे समय तक खगोलविदों के उपयोग में थी और नाविकों द्वारा कार्यान्वित होने लगा था।
जहां तक ​​तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व, इरोटोथिनेस ने सरल ज्यामिति का उपयोग करके और दो अलग-अलग स्थानों पर ऑब्जेक्ट्स की छायाओं का अध्ययन करके पृथ्वी की परिधि की सही गणना की थी: अलेक्जेंड्रिया और सियेन (आधुनिक आस्वान)। इरोटोथिनेस के परिणामों की पुष्टि अलेक्जेंड्रिया और रोड्स में तारकीय टिप्पणियों की तुलना द्वारा पुष्टि की गई थी, जो पहली सदी ईसा पूर्व में पोसिडोनियस द्वारा किया गया था। इन मापों को विद्वानों के बीच व्यापक रूप से जाना जाता था, लेकिन उन पुराने दूरी के यूनिटों के बारे में भ्रम, जिसमें उन्हें व्यक्त किया गया था, कोलंबस के दिनों में पृथ्वी के सटीक आकार के बारे में कुछ बहस के लिए प्रेरित किया था।
अभियान का ऐतिहासिक महत्व
क्रिस्टोफर कोलंबस की खोज की गई सभी चीजों की आधिकारिक अर्ध सदी के बाद की सराहना की गई थी। इतनी देर क्यों? बात यह है कि इस अवधि के बाद, उपनिवेशित मेक्सिको और पेरू से पुरानी दुनिया के पूरे गैलेन को वितरित करना शुरू हुआ, सोने और चांदी के साथ भरवां
स्पेनिश शाही खजाना अभियान, सोने की केवल 10 किलो तैयार करने के लिए खर्च किया, और तीन सौ वर्षों के लिए, स्पेन अमेरिका की कीमती धातुओं से बाहर ले करने के लिए समय पड़ा है, जिसका मूल्य शुद्ध सोने के कम से कम 3 लाख किलो था।
अफसोस, पागल सोने स्पेन के लिए अच्छा नहीं था, यह उद्योग या अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित नहीं किया और नतीजतन, देश अभी भी कई यूरोपीय देशों के पीछे निराशाजनक है।
आज क्रिस्टोफर कोलंबस के सम्मान न केवल कई जहाजों और जहाज, शहरों, नदियों और पहाड़ों, लेकिन नाम में भी, उदाहरण के लिए, अल साल्वाडोर की मौद्रिक इकाई, कोलंबिया के राज्य, दक्षिण अमेरिका में स्थित है, साथ ही अमेरिका में एक प्रसिद्ध राज्य।
अमेरिका के लिए चार यात्राएं कीं:
 पहली यात्रा (2 अगस्त, 14 9 2 - 15 मार्च, 14 9 3)
दूसरी यात्रा (25 सितंबर, 14 9 3 - जून 11, 14 9 6)
तीसरी यात्रा (30 मई, 14 9 8 - नवंबर 25, 1500)
चौथी यात्रा (9 मई, 1502 - नवंबर 1504)


Henry Ford



फोर्ड ने पहली ऑटोमोबाइल कंपनी विकसित की और निर्मिती भी की जिसे अमेरिका के मध्यम वर्गीय लोग भी आसानी से ले सकते थे। उनके द्वारा निर्मित ऑटोमोबाइल कंपनी को उन्ही के उपनाम पर रखा गया था और जल्द ही इस कंपनी ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना ली और साधारण ऑटोमोबाइल कंपनी ने जल्द ही बहुमूल्य कार बनाना शुरू किया और 20 वी शताब्दी में अपनी एक प्रभावशाली छाप छोड़ी। इसके बाद उन्होंने मॉडल टी नामक गाड़ी निकाली जिसने यातायात और अमेरिकी उद्योग में क्रांति ला दी।

        वह आधुनिक युग की भारी मात्रा में उत्पादन के लिए प्रयुक्त असेम्बली लाइन के जनक थे | उन्होंने “मॉडल टी ” नामक गाडी निकाली , जिसने यातायात एवं अमेरिकी उद्योग में क्रांति ला दी | वो एक महान अविष्कारक भी थे | उन्हें अमेरिका के 161 पेटेंट प्राप्त हुए थे | फोर्ड कम्पनी के मालिक के रूप वो संसार के सबसे धनी एवं विख्यात व्यक्तियों में से एक थे |

आरंभिक जीवन :

        हेनरी फोर्ड का जन्म 30 जुलाई 1863 को मिशिगन के ग्रीनफ़ील्ड फार्म में हुआ था। असल में उनका परिवार इंग्लैंड के सॉमरसेट से था। फोर्ड के 15 साल की आयु में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी। हेनरी फोर्ड के भाई-बहनों में मार्गरेट फोर्ड (1867-1938), जेन फोर्ड (1868-1945), विलियम फोर्ड (1871-1917) और रोबर्ट फोर्ड (1873-1934) शामिल है।

        किशोरावस्था में उनके पिताजी ने उन्हें एक जेब घडी दी थी। 15 साल की आयु में फोर्ड पूरी तरह गिर चुके थे लेकिन दोस्त और पड़ोसियों की सहायता से वे फिर उठकर खड़े हुए और घडी ठीक करने वाले के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनायी। फोर्ड ने क्लारा जेन ब्रायंट (1866-1950) से 11 अप्रैल 1888 को हुई थी और उनकी पत्नी की सहायता से ही वे एक सॉमिल भी चलाते थे। उनका एक बेटा भी है : एड्सेल फोर्ड (1893-1943)।

        पाँच वर्ष की आयु में हैनरी का दाखिला पास ही के कस्बे के स्कूल में कराया गया था। पाँचवी पास करने के बाद आगे की पढाई के लिए हैनरी को घर से ढाई किलोमीटर पैदल जाना पङता था। पिता की यही इच्छा थी कि हैनरी एक अच्छा किसान बने किन्तु हैनरी का दिमाग दूसरी दिशा में व्यस्त रहता था। 11 वर्ष की उम्र में हैनरी के खिलौने आम बच्चों से अलग हट कर थे। चाय की केतली, खाङी हल तथा छोटे-छोटे पुर्जे उनके खिलौने हुआ करते थे। बहुत कम उम्र में ही वे पड़ोसीयों की घङियाँ सुधारने लगे थे।

        शुरूवाती दौर में घङी सुधारने वाले हैनरी फोर्ड ने मोटरकार के आविष्कार तथा उसमें आधुनिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पिता की इच्छा के विरुद्ध हैनरी डेट्राइट चले आए और एक कारखाने में काम करने लगे किन्तु वहाँ से प्राप्त आमदनी से कार बनाने के सपने को साकार नही सकते थे। अतः एक सुनार के यहाँ पार्टटाइम काम करने लगे और शाम को घङियाँ भी सुधारते। डेट्राइट में रहते हुए कुछ ही समय हुआ था कि पिताजी की तबियत खराब होने का संदेश आया और वे घर वापस चले गये। खेत की पूरी जिम्मेदारी अब हैनरी के कंधो पर आ गई थी।

        16 वर्ष की उम्र में ये घर छोड़कर डिट्रॉइट चले गए। यहाँ कई कारखानों में काम करके इन्होंने यांत्रिक विद्या का ज्ञान प्राप्त किया। सन् 1886 में ये घर वापस आए, पिता की दी हुई 80 एकड़ भूमि पर बस गए और वहीं मशीन मरम्मत करने का एक कारखाना खोला। सन् 1887 में इनका विवाह हुआ तथा इसी वर्ष इन्होंने गैस इंजिन और खेतों पर भारी काम करनेवाली मशीन बनाने की एक योजना बनाई, किंतु यंत्रों की ओर विशेष आकर्षण के कारण ये घर पर न टिक सके और फिर डिट्रॉइट चले आए।

        सन 1890 में इन्होने डेट्रॉइट एडिसन इलेक्ट्रिक कम्पनी में काम करना आरम्भ किया और सन 1893 में पेट्रोल से चलने वाली पहली गाडी बनाई , जिसमे 4 HP की शक्ति होती थी | सन 1893 में हेनरी Henry Ford ने दुसरी गाडी बनाना आरम्भ की और सन 1899 में इलेक्ट्रिक कम्पनी की नौकरी छोडकर डेट्रॉइट ऑटोमोबाइल कम्पनी की स्थापना की | फिर इस कम्पनी को छोडकर ये दौड़ में भाग लेने वाली गाडिया बनाने लगे | इन गाडियों ने कई दौड़ में सफलता पायी, जिसके कारण इनका बड़ा नाम हुआ |

        इस प्रसिधी के कारण हेनरी फोर्ड ने सन 1903 में फोड़ मोटर कम्पनी की स्थापना की | पहले साल में फोर्ड मोटर कम्पनी में दो सिलिंडर और 8 HP की 1708 गाडिया बनाई | इनकी बिक्री से कम्पनी को शत प्रतिशत लाभ हुआ | दुसरे साल में उनकी 5000 गाड़िया बिक गयी | Henry Ford फोर्ड इस कम्पनी के अध्यक्ष हो गये और अंत में अन्य हिस्सेदारों को हटाकर अपने एकमात्र पुत्र एड्सेल ब्रिअट फोर्ड सहित पूर्ण कम्पनी के मालिक हो गये |

        प्रथम वर्ष में फोर्ड मोटर कंपनी ने दो सिलिंडर तथा आठ अश्वशक्तिवाली 1,708 गाड़ियाँ बनाई. इनकी बिक्री से कंपनी को शत – प्रतिशत लाभ हुआ. दुसरे वर्ष 5,000 गाड़ियाँ बिकीं. फोर्ड इस कंपनी के अध्यक्ष हो गए और अंत में अन्य हिस्सेदारों को हटाकर अपने एकमात्र पुत्र, एडसेल ब्रायंट फोर्ड,के सहित सम्पूर्ण कंपनी के मालिक हो गए.

        इनका उद्देश्य हल्की, तीव्रगामी,दृढ़ किन्तु सस्ती मोटर गाड़ियों का निर्माण करना था. इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए इन्होंने मशीन के अंगों के मानकीकरण,प्रगामी संयोजन, व्यापक बिक्री तथा ऊँची मजदूरी देने के सिधान्तों को अपनाया. इन्होंने खेती के लिए ट्रेक्टर भी बनाए,सन 1924 तक इनकी कंपनी ने 20 लाख गाड़ियाँ,तर्क और ट्रैक्टर बनाए थे और सन 1931 तक इनके सब कारखानों में निर्मित गाड़ियों की संख्या दो करोड़ तक पहुँच गई.

        प्रथम विश्वयुद्ध के समय इन्होंने कुछ प्रभावशाली लोगों को एकत्रित कर “ऑस्कर द्वितीय” नामक शांति पॉट पर यूरोप की यात्रा इस विश्वास से की कि यह अभियान युद्ध बंद करने में समर्थ होगा. यह सब होते हुए भी देहाती जीवन के प्रति पक्षपात तथा अमरीका की विगत रीतियाँ तथा स्मृतिचिन्हों के प्रति अटूट श्रद्धा रखने के कारण इन्होंने बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की थी.


रोचक तथ्य :

        कुछ साल पहले ford ने निश्चय किया की वह अपनी मशहूर v-8 मोटर बनाएँगे. वह कार के लिए v-8 इंजिन बनाना चाहते थे एक ऐसी कार जिसका खर्च आम लोग भी उठा सके.  इसके लिए उन्होने एक ऐसा engine बनाने का निश्चय किया जिसमे आठ सिलिंडरो को एक ही जगह डालने का निश्चय किया गया और अपने इंजीनियरो को इस इंजिन का डिज़ाइन बनाने के लिए कहा.ये डिज़ाइन पेपर पर बनाया गया. लेकिन इंजीनियरो का मानना था की यह असंभव है. फोर्ड ने उनसे कहा किसी भी तरह इसे बनाया जाए. लेकिन उन्होने कहा की ये असंभव है. फोर्ड ने उन्हे आदेश दिया की आगे बढ़ो और तब तक लगे रहो जब तक तुम सफल ना हो जाओ चाहे कितना भी समय लगे.

        महान उद्योगपति हेनरी फोर्ड के बारे में एक किस्सा अकसर सुनाया जाता है। फोर्ड एक अरबपति थे, फिर भी वे अपने ऑफिस और फैक्ट्री में बिलकुल साधारण कपड़ों में आ जाते थे! यह देखकर उनके सभी कर्मचारी बहुत अचरज करते और आपस में बातें करते की बॉस के पास इतना पैसा है फिर भी वे इतने सिंपल कपड़ों में ऑफिस आ जाते हैं! एक दिन उनकी सेक्रेटरी ने हिम्मत कर उनसे कह दिया “सर आपके पास इतना पैसा है की आप सारी दुनिया से, एक से बढ़कर एक कपड़ें मंगवा सकतें है, फिर भी आप इतने सादा कपड़ों में ऑफिस आ जातें हैं? हेनरी फोर्ड मुस्कुरा दिए और कहा “यहाँ सब जानतें हैं की में हेनरी फोर्ड हूँ! में महंगे कपडे पहनकर, सब को यह दिखाने की चिंता क्यों करूँ की में हेनरी फोर्ड हूँ।

        निवेशकों की पूंजी से हेनरी फोर्ड ने ऑटोमोबाइल कंपनी की स्थापना की फिर इस कंपनी को छोड़कर ये  रेसर कार बनाने लगे। उस कार को कई रेस में सफलता मिली इससे उनका बहुत नाम हुआ। इस प्रसिद्धि से उन्होंने Ford Motor कंपनी की स्थापना की। पहले साल Ford Motor 1,708 कारो का निर्माण किया और इससे उन्हें बहुत मुनाफा हुआ अगले साल उन्होंने उत्पादन बढ़ा कर 5000 करो का निर्माण किया। 1908 में पांच साल बाद इस कंपनी ने मॉडल T कार लॉन्च की, जिसने मोटर कार उद्योग में क्रांति कर दी। पहले ही साल 10,000 कारे बिक गई। इससे उन्हें इतना मुनाफा हुआ की उन्होंने फ्रांस और में इंग्लैंड में औरमैन्यूफैक्चरिंग संयंत्र स्थापित किए।


विचार :

        फोर्ड में आदर्शवादिता तथा कट्टरपन का विचित्र संमिश्रण था। ये पुंजोत्पादन के पक्षपाती थे, किंतु इनका यह भी विचार था कि उद्योग को इस प्रकार विकेंद्रित करना चाहिए कि खेती के साथ साथ कारखानों का काम भी चले। ये ऊँची मजदूरी देने के पक्ष में थे, किंतु मजदूर संघों के घोर विरोधी थे; यहाँ तक कि अपने कारखानों में संघों को पनपने न देने के विचर से ये भेदियों तथा सशस्त्र पुलिस से काम लेते थे। शांति के ये कट्टर पक्षपाती थे, किंतु नात्ज़ियों की भाँति ये यहूदी विरोधी थे।

        बैंकों और महाजनों से भी इनकी नहीं पटती थी। प्रथम विश्वयुद्ध के समय इन्होंने कुछ प्रभावशाली लोगों को एकत्रित कर ""ऑस्कर द्वितीय"" नामक शांति पोत पर यूरोप की यात्रा इस विश्वास से की कि यह अभियान युद्ध बंद कराने में समर्थ होगा। यह सब होते हुए भी देहाती जीवन के प्रति पक्षपात तथा अमरीका की विगत रीतियों तथा स्मृतिचिह्नों के प्रति अटूट श्रद्धा रखने के करण इन्होंने बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की थी।